Sunday 5 June 2011

धूल धक्कड़ हो, धुआं हो, धुंध हो बेशक वहां,
मेरा अपना गाँव फिर भी, मेरा अपना गाँव है !

कल्पवृक्षों के घने साये मुबारक हों तुम्हें,
मेरे सर पे मेरी माँ की ओढ़नी की छाओं है !!

No comments:

Post a Comment